पंजीयन नहीं, दंड की व्यवस्था बन गई साय सरकार की नई नीति....
- ANIS LALA DANI

- Jul 11
- 2 min read
पत्रकार अमृतेश्वर सिंह की कलम से:-
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और भाजपा सरकार द्वारा लागू की गई संशोधित दुकान एवं स्थापना अधिनियम 2017 की नई व्यवस्था ने प्रदेश के छोटे व्यापारियों और असंगठित श्रमिकों को घोर असमंजस और परेशानी में डाल दिया है।

13 फरवरी 2025 से लागू इस अधिनियम में पूरी पंजीयन प्रक्रिया को पूरी तरह ऑनलाइन कर दिया गया, लेकिन ज़मीनी तैयारी और तकनीकी संसाधनों के बिना। प्रदेश के 60% से अधिक छोटे दुकानदारों और श्रमिकों के पास न स्मार्टफोन है, न इंटरनेट, और न पोर्टल चलाने का ज्ञान। इसके बावजूद उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे स्वचालित रूप से डिजिटलीकरण का हिस्सा बन जाएं।
पंजीयन में देरी होने पर 25% जुर्माना, ऊपर से प्रशमन शुल्क, और उसके बावजूद पंजीयन करने पर कोई प्रत्यक्ष लाभ या सामाजिक सुरक्षा की स्पष्टता नहीं—इस पूरी प्रक्रिया को आम नागरिकों के लिए भ्रम और भय से भर दिया गया है।
सबसे गंभीर पहलू यह है कि भाजपा सरकार ने इस प्रक्रिया की डेडलाइन 14 अगस्त 2025 तय की है—यानी लाखों दुकानदारों और श्रमिकों को केवल कुछ महीनों में डिजिटल पंजीयन कर लेना है। बिना कोई शिविर, सहयोग केंद्र, या जन-जागरूकता अभियान चलाए समयसीमा थोप देना, व्यवस्थागत असंवेदनशीलता को उजागर करता है।
साथ ही, तकनीकी अवरोध जैसे OTP फेल होना, दस्तावेज़ रिजेक्ट होना और पोर्टल लॉगिन न होना, लगातार पंजीयन प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं। इसके बावजूद, वर्तमान श्रम मंत्री केवल प्रेस वार्ताओं में खुद को सफल साबित करने में जुटे हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत से उनका मंत्रालय पूरी तरह कट चुका है।
📌 इसके विपरीत, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने व्यापारियों और श्रमिकों को सुविधाओं और समावेशन के साथ जोड़ा था:
सरल समाधान योजना (2023) से 25,681 व्यापारियों को टैक्स और जुर्माना माफी मिली।
गुमाश्ता लाइसेंस की बाध्यता समाप्त कर लाखों दुकानदारों को प्रशासनिक राहत दी गई।
गौठान और RIPA योजनाओं से 80,000 से अधिक महिलाएं और श्रमिक रोजगार से जुड़े।
तेलघानी, रजक, चर्मकार, शिल्पकार बोर्डों के ज़रिए परंपरागत व्यवसायों को नया जीवन मिला।
भूपेश सरकार की नीति संवाद, सुलभता और संवेदनशीलता पर आधारित थी। वहीं, मुख्यमंत्री साय की भाजपा सरकार की नीति आज तकनीकी दूरी, प्रशासनिक ठंडक और डर के माध्यम से लागू की जा रही है।
यह अधिनियम एक अवसर हो सकता था — लेकिन जिस रूप में इसे लागू किया गया है, वह इसे एक दंडात्मक अभियान में बदल रहा है।





.jpg)







