सात लाख गाँव गणराज्यों का महासंघ कैसे बनेगा…?मंजू सिंह
- ANIS LALA DANI

- Feb 22, 2024
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पत्रकार कमलेश विश्वकर्मा की क़लम से:-
विश्व व्यापी पूँजीवादी नव साम्राज्यवादी तूफ़ान हर प्रकार के मानवीय सम्बन्धों को जड़ से उखाड़े डाल रहा है। गाँव या मुहल्ले स्तर का समाज और परिवार उसके ख़ास निशाने पर है और वे दोनों ध्वस्त होते जा रहे हैं। हम जो समूहिकता का प्रतीक है, की जगह मैं का बोलबाला है। और एकाकी इंसान राज्य और बाज़ार की ताक़तों के सामने नगण्य है। वह उनका ग़ुलाम होता जा रहा है। खुले बाज़ार में बिकने वाली अदना सी वस्तु के रूप में उसकी अपनी कोई अस्मिता नहीं बच पायेगी।
मेरी दृष्टि में इस भयावह त्रासदी का मुक़ाबला मानवीय मूल्यों में विश्वास करने वाला समाज ही कर सकता है। परंतु अंग्रेज़ी राज के दौर में समाज की अस्मिता को नकार कर एक ऐसी व्यवस्था क़ायम की गयी थी जिसमें हर बात के लिए इंसान किसी न किसी सरकारी महकमे और क़ानून के दबाव में आगया। समाज को जान बूझ कर तोड़ा गया जिससे राज्य की ताक़त को कोई चुनौती न दी जा सके।
आज़ादी के बाद भी गाँव ग़ुलाम ही बने रहे और समाज के लिए क़ानून में स्थान नहीं मिला। संविधान के अनुच्छेद 40 की भावना के अनुरूप समाज की पुनर्स्थापना नहीं हो सकी ।
अखिल भारतीय पंचायत परिषद के अनवरत् संघर्षो एवं बलवंत राय मेहता पंचायती राज फ़ाउंडेशन के सुझावों के अनुसार भारतीय संविधान में किए गए 73 वें संविधान संशोधन के अनुच्छेद 243 में ग्राम सभा के रूप में गाँव समाज प्रतिष्ठित अवश्य हुआ परंतु उसको विधान सभाओं की दया भिक्षा पर छोड़ दिया गया है।
परिषद एवं फ़ाउंडेशन की माँग पर देव गौडा की सरकार ने 1996 में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए व्यवस्था में स्वयंभू समाज की कल्पना ग्राम सभा के रूप में स्वीकार हुई और अपनी व्यवस्था स्वयं करने के लिए सक्षमता का मंत्र पंचायत उपबंध ( अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार ) अधिनियम में प्रतिष्ठित हुआ। गांधी जी के सपने सात लाख गाँव गण राज्यों के महासंघ के रूप वाले भारत के निर्माण की आधार शिला रखी गयी।
अनुसूचित क्षेत्रों की गाँव गणराज्य जैसी व्यवस्था के कुछ अंश मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड में सामान्य इलाक़ों के लिए भी स्वीकार किए गये। परमुख़ापेक्षी ग्राम सभा हमारी राष्ट्रीय चेतना पर राहु - केतु का रूप ही कहा जा सकता है। आइये हम सभी मिलकर इस कलंक को मिटाने का संकल्प लें और पूरे देश में गाँव गणराज्य की स्थापना का संकल्प और शंखनाद कर महात्मा गांधी जी के सपने को साकार करें।





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