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आस्था का संगम छत्तीसगढ़ का राजिम कुंभ (कल्प)





































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पत्रकार अमृतेश्वर सिंह की क़लम से:-

रायपुर/ धर्म, संस्कृति और संविधान छत्तीसगढ़ के सदियों से लब्ध प्रतिष्ठित प्रयागराज राजिम में माघ पूर्णमासी का लक्खी मेला लगता रहा है

लोक आस्था का यह महापर्व प्रदेश के कोने कोने से आए श्रद्धालुओं के जन समुद्र के कारण एक कुम्भ के स्वरूप में ही भरता रहा है

पर जब से भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रवादी, धर्मप्राण सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने छत्तीसगढ़ को एक नई सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान देने के लिए प्रयाग राज राजिम को चुना और उसकी गरिमा के अनुरूप इसे त्रिवेणी संगम के राजीव लोचन भगवान और कुलेश्वर महादेव की नगरी इस हरिहर क्षेत्र को कुम्भ के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया। 2003 में तत्कालीन डॉक्टर रमन सिंह की सरकार में धर्मस्व, संस्कृति एवम पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने यह बीड़ा उठाया और देश भर के साधु संतों, महामंदलेश्वरों, अखाड़ों के महंतों को राजिम आमंत्रित किया और इसमें देश के विभिन्न पीठों के जगतगुरु शंकराचार्य भी पधारे और इस आहूत धर्म संसद ने समवेत स्वरों में इसे प्रतिवर्ष होने वाले राजिम कुम्भ के रूप में मान्यता थी। अब यह माधी पुन्नी मेला अपने भव्य और दिव्य रूप में पदोन्नत होकर देश और दुनिया में राजिम कुम्भ के रूप में पहचाना जाने लगा और इसमें कर्मयोगी कृष्ण सरीखे बृजमोहन अग्रवाल ने अपनी भागीरथी भूमिका निभाई। स्वामी विशोकानंद, सतपाल महाराज, चंपारण पीठ के महाप्रभु वल्लभाधीश के वंशज जै जै श्री द्वारकेश लालजी चक्रमहामेरू पीठ के डंडी स्वामी, पूज्य भाई रमेश भाई ओझा, डॉक्टर गंगादास, अभिलाष साहेब, शदानी दरबार के नवम पीठ प्रमुख युधिष्ठिर लाल, डॉक्टर बिन्दु, तुलसी पीठ प्रमुख स्वामी रामभद्राचार्य, सभी अखाड़ों के प्रमुख जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरीजी महाराज, पण्डित विजय शंकर मेहता, जोधपुर के अक्रिय, कौशल्या पीठ के बाल योगी रामबालक दास और सैकड़ों अनेक नामचीन साधु संतों की चरण रज पाकर यह धरा और यहां के निवासी धन्य हो गए, बृजमोहन अग्रवाल ने व्यक्तिगत रुचि लेकर इसकी नई पहचान दिलाने के लिए अनथक प्रयास किए, दिन रात एक कर दिए और देश विदेश में राजिम की ख्याति फैलने लगी। सभी साधु संतों के प्रवचनों की अमृत वर्षा से यह धरती कुम्भ नगरी के रूप में तेजी से पल्लवित होने लगी। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक होने वाले इस आयोजन में सन्त समागम में विभिन्न धार्मिक गतिविधियां, यज्ञ हवन, अनुष्ठान, श्री मद भागवत, रामायण, अखण्ड रामायण, ज्योतिष एवम वास्तु सम्मेलन राष्ट्रीय स्तर पर होने और देखते ही देखते बहुत कम समय में छत्तीसगढ़ का यह प्रयाग राज राजिम कुम्भ के रूप में लोकप्रिय हो गया। लोगों को त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाकर सुख की अनुभूति होने लगी, काशी और ऋषिकेश की तरह यहां भी पण्डित परिषद के द्वारा त्रिवेणी संध्या महानदी महतारी की आरती की जाने लगी, जिसे सभी संतो का आशीर्वाद मिला। खेल, तमाशे, मीना बाजार, तरह तरह के झूलों का साथ सबने मिलकर इसकी रौनक में चार चांद लगा दिए। मुक्ताकाशी मंच से विश्वविख्यात हस्तियों की भजन संध्या होने लगी, स्थानीय लोक कलाकारों को एक विराट मंच मिला और कुलमिलाकर राजिम कुम्भ क्षेत्र का ऐसा सर्वांगीण प्रचार हुआ कि आज यह छत्तीसगढ़ की नई पहचान बन गई है, यह सब छत्तीसगढ़ शासन के धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की कर्मयोगिता के कारण ही हो पाया। वे सभी साधु संतो के बड़े लाडले हैं, हमारे पूरी पीठाधीश्वर संत भगवंत जगद्‌गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद ने कालांतर में यह निर्देश दिया कि हमारे सतयुग के सनातन चार कुम्भ हैं जो प्रत्येक 12 वर्ष में लगते हैं। यह कलयुग का इस कल्प का ऐसा कुम्भ है, जो प्रत्येक वर्ष लगता है, जिसमे एक ही मंच पर सभी संप्रदायों के सन्त आते हैं इसलिए इसके साथ "कल्प' शब्द जोड़ दिया जाए, तब उनकी इच्छा को आदेश मानकर शिरोधार्य करते हुए बृजमोहन ने राजिम कुम्भ कल्प नाम दिया, किन्तु 2018 में आई कांग्रेस की सरकार ने इसे माधी पुन्नी कर दिया, यह ठीक ऐसा ही था जैसे कि किसी राष्ट्रपति को पार्षद बना दिया जाए, देश और प्रदेश में हर साल हजारों पुन्नी मेले होते रहते हैं, और राजिम की इस बड़ी पहचान को फिर से छोटा कर देना यहां के निवासियों के लिए भी बड़ा दुख दाई था क्यों कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी कहा था कि मेरे लिए मेरी जननी और मेरी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है, और यही कारण है कि अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि राजिम को फिर से एक शासकीय अध्यादेश लाकर बृजमोहन अग्रवाल ने इसके गौरव को वापस लौटाया है। इस अंचल के लोग इस बात से बड़े अभिभूत हैं और इस वर्तमान सरकार के प्रति अपना आभार प्रकट कर रहे हैं। इस बार 24 फरवरी से 8 मार्च तक होने वाले राजिम कुम्भ कल्प को बड़े उत्साहित होकर "रामोत्सव" नाम दिया गया है उसके केंद्र में यह कारण है कि सदियों की प्रतीक्षा और संघर्षों के बाद रामलला अपनी अयोध्या पुरी के भव्य और दिव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हुए हैं और इस उपलक्ष्य में पूरे देश में और दुनिया में भी अप्रवासी भारतीयों ने धूमधाम से फिर से दिवाली मनाई हैं, जोरशोर से उत्सव मनाया है, इसलिए राजिम में भी "रामोत्सव" मनाया जा रहा है। इस बार अनुराधा पौडवाल की भजन संध्या से आज शुरुआत हो रही है, पंडित प्रदीप मिश्रा, बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री सहित हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, वृन्दावन, काशी सहित देश के कोने कोने से साधु संत पधार रहे हैं। राजिम कुम्भ कल्प को अब फिर से धर्म संस्कृति और संविधान की भी अधिकृत स्वीकृति मिल गई है। छत्तीसगढ़ का आदिवासी, वनवासी, भोलाभाला जनमानस जिनके बीच राम रहे, रमें रहे, अपने भांचा राम को अपने बीच पाकर पुलकित है, प्रसन्न है !

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