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3200 करोड़ शराब घोटाला: न्यायालय ने जारी किया संमन्स, कोर्ट परिसर में मौजूद होने के बाद भी न्यायालय में हाजिर नहीं हुए अधिकारी....


रायपुर:- छत्तीसगढ़ के 3200 करोड़ रुपये के बहुचर्चित शराब घोटाले में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) की कार्यवाही एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। सोमवार को EOW ने विशेष अदालत में 28 से अधिक अधिकारियों के खिलाफ चालान पेश किया, जो इस बड़े घोटाले में आरोपी बनाए गए हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि इनमें से किसी भी अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला यह था कि कोर्ट परिसर में मौजूद होने के बावजूद ये अधिकारी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं हुए। इसके बाद विशेष अदालत ने गिरफ्तारी वारंट की जगह, अगली सुनवाई में उपस्थित होने के लिए 'संमन्स' जारी कर दिए। अभियोजन के उपसंचालक मिथलेश वर्मा ने इसे न्यायालय का विवेकाधिकार बताया, लेकिन उनकी टिप्पणी ने EOW और एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) की पूरी कार्रवाई पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं, क्योंकि ऐसा लगा कि वे सरकार की ओर से नहीं, बल्कि आरोपी गणों का पक्ष रख रहे थे।

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ये सभी अधिकारी वर्तमान में आबकारी विभाग में पदस्थ हैं और इन पर पिछली कांग्रेस सरकार में नेताओं के इशारे पर शराब घोटाले में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां करने का आरोप है। EOW ने 5000 पन्नों से ज्यादा का चालान 29 बंडलों में विशेष अदालत में पेश किया। इस चालान में विस्तार से बताया गया है कि कैसे हर एक अधिकारी ने नेताओं के इशारे पर शराब घोटाले में अपनी भूमिका निभाई।


कैसे हुई 3200 करोड़ की शराब लूट पढ़े......

जांच एजेंसी का दावा है कि यह शराब घोटाला 2019 से 2023 तक अनवरत चला। इस दौरान डिस्टलरी से सीधे दुकानों तक अवैध शराब पहुंचाई जाती थी। यह सब जिलों में पदस्थ आबकारी अधिकारियों की मिलीभगत और निगरानी में होता था। बताया गया है कि तत्कालीन सहायक आयुक्त जनार्दन कौरव की निगरानी में डुप्लीकेट होलोग्राम प्रिंट होते थे। ये अवैध होलोग्राम अमित सिंह दीपक दुआरी और प्रकाश शर्मा के माध्यम से तीनों डिस्टलरी में पहुंचाए जाते थे। इन डुप्लीकेट होलोग्रामों को लगाकर अवैध शराब सीधे दुकानों तक पहुंचाई जाती थी। इस अवैध बिक्री से अकेले अरुणपति त्रिपाठी को 20 करोड़ रुपये का मोटा कमीशन मिला।


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          जांच एजेंसी ने अपनी चार्जशीट में खुलासा किया है कि फरवरी 2019 से आबकारी विभाग में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार शुरू हुआ। शुरुआत में हर महीने 800 पेटी शराब से भरे 200 ट्रक डिस्टलरी से निकलते थे और एक पेटी को 2840 रुपये में बेचा जाता था। बाद में इस अवैध धंधे में तेजी आई और हर माह 400 ट्रक शराब की सप्लाई होने लगी और प्रति पेटी शराब 3880 रुपये में बेची जाने लगी। EOW की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि इन तीन सालों में 60 लाख से ज्यादा शराब की पेटियां अवैध रूप से बेची गईं, जिससे राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ।

           जांच एजेंसी का दावा है कि 2019 से 2023 तक शराब सप्लायरों से जिला आबकारी अधिकारियों ने 319 करोड़ रुपये की अवैध वसूली की है। यह सारा पैसा एक सुनियोजित सिंडिकेट को पहुंचाया गया। अप्रैल 2019 से जून 2022 तक अवैध शराब बेचकर 280 करोड़ रुपये वसूले गए। हर साल 70 करोड़ रुपये से ज्यादा की वसूली का टारगेट था, जिसे आबकारी अधिकारियों ने पूरा किया। इस दौरान जिला आबकारी अधिकारियों ने कुल 2174.60 करोड़ रुपये की 60 लाख पेटी अवैध शराब बेची।

इन अधिकारियों पर लटकी है तलवार:

जिन अधिकारियों पर पैसा लेने का आरोप है उनमें तत्कालीन आबकारी आयुक्त आई ए एस निरंजन दास, तत्कालीन सहायक जिला आबकारी अधिकारी रायपुर जनार्दन कौरव, तत्कालीन उपायुक्त आबकारी अधिकारी धमतरी अनिमेष नेताम, तत्कालीन उपायुक्त आबकारी महासमुंद विजय सेन शर्मा, तत्कालीन सहायक आयुक्त आबकारी अरविंद कुमार पटेल, तत्कालीन सहायक कमिशनर आबकारी प्रमोद कुमार नेताम, तत्कालीन सहायक आयुक्त आबकारी रामकृष्ण मिश्रा, तत्कालीन सहायक आयुक्त आबकारी विकास कुमार गोस्वामी, तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी इकबाल खान, तत्कालीन सहायक जिला आबकारी अधिकारी नीतिन खंडजा, तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी नवीन प्रताप सिंग तोमर, तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी मंजूश्री कसेर, तत्कालीन सहायक आयुक्त सौरभ बख्शी, तत्कालीन सहायक आयुक्त आबकारी दिनकर वासनिक, तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार सिंह, जिला आबकारी अधिकारी मोहित कुमार जायसवाल, आबकारी उपायुक्त नीतू नोतानी, तत्कालीन सहायक आयुक्त आबकारी रविश तिवारी, आबकारी अधिकारी गरीबपाल दर्दी, आबकारी अधिकारी नोहर ठाकुर और आबकारी सहायक आयुक्त सोनल नेताम शामिल हैं।

उच्च न्यायालय का कड़ा रुख, फिर भी .........

एसीबी और ईओडब्ल्यू ने तीन रूलिंग जजों को बताया है कि करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोपियों को गिरफ्तार करना आवश्यक नहीं है। सीबीआई ने भी घोटाले के आरोपियों की गिरफ्तारी को जरूरी नहीं समझा और तर्क दिया कि किसी भी गैर जमानती या संज्ञेय अपराधों में पुलिस को गिरफ्तार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती और यह नागरिकों की स्वतंत्रता है। हालांकि इस तर्क पर कई सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसी घोटाले में कई आई ए एस अधिकारी और बड़े नेता जेल की सलाखों के पीछे हैं, जिनकी गिरफ्तारी हुई थी। 

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      यह भी गौरतलब है कि वर्ष 2017 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि भ्रष्टाचार या घोटालों में संलिप्त आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद ही चालान पेश किया जाना न्यायोचित होगा। ऐसे में क्या एसीबी और ईओडब्ल्यू ने इतने बड़े घोटाले में हाईकोर्ट के निर्देशों की भी अवहेलना कर आरोपियों को बचाने की साजिश रची?हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2024 को अपने आदेश में भी इस बात पर तल्ख टिप्पणी की थी। एम सी आर सी नंबर 5081/2024 के तहत हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कंडिका क्रमांक 30 में साफ कहा था कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि अभियोजन एजेंसी अपने दृष्टिकोण में असंगत रुख अपना रही है और जांच में मनमानी कर रही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ गवाहों ने अपने धारा 164 के बयानों में घोटाले के सिंडिकेट में शामिल होने की बात स्वीकार की थी, लेकिन उन्हें सक्षम अदालत द्वारा क्षमादान दिए बिना ही अभियोजन गवाहों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

हाईकोर्ट की यह टिप्पणी सीधे तौर पर जांच एजेंसियों पर उंगली उठाती है और उनकी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। इस पूरे मामले में EOW और एसीबी की कार्रवाई पर लगातार प्रश्न उठ रहे हैं, खासकर तब जब बिना गिरफ्तारी के चालान पेश किया गया है और गिरफ्तारी वारंट की जगह महज संमन्स जारी कर औपचारिकता पूरी की जा रही है।




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